मोदी के नेतृत्व मे भारत विश्व मे शांति स्थापित करने मे निभा सकता है महत्वपूर्ण भूमिका
- डॉ. जगदीश गाँधी, शिक्षाविद् एवं संस्थापक-प्रबन्धक,
सिटी मोन्टेसरी स्कूल (सीएमएस), लखनऊ
प्रधानमंत्री श्री
नरेन्द्र मोदी
से हमारी
पुरजोर अपील
की है
कि वह
अफगानिस्तान में
शान्ति व सुरक्षा के
लिए अन्तर्राष्ट्रीय प्रयासों का
नेतृत्व करें।
अफगानिस्तान में
इस समय
लोकतन्त्र बुरी
तरह से
चरमरा गया
है और
नागरिकों के
अधिकार सुरक्षित नहीं है।
अतः विश्व
के सबसे
सफल व सबसे बड़े
लोकतान्त्रिक देश
के प्रधानमंत्री होने के
नाते श्री
नरेन्द्र मोदी
जी को
अफगानिस्तान की
पीड़ित व व्यथित मानवता को राहत
पहुँचाने हेतु
अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय की अगुवाई करनी चाहिए। इस सन्दर्भ मंे मैंने
श्री मोदी
जी को
पत्र लिखकर
अपील की
है।
हमने पत्र
में लिखा
है कि
भारत वर्तमान में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का
अध्यक्ष है
और अफगानिस्तान के मुद्दे पर आयोजित चर्चा-परिचर्चा की अध्यक्षता कर चुका
है। प्रधानमंत्री श्री मोदी
के कुशल
नेतृत्व व दृष्टिकोण से
पूरा विश्व
प्रभावित है।
मुझे पूरा
विश्वास है
कि इस
मुद्दे पर
प्रधानमंत्री श्री
मोदी जी
के नेतृत्व को हर
देश से
व्यापक समर्थन मिलेगा और
यह सुनिश्चित हो सकेगा
कि अफगानिस्तान के आम
नागरिकों को
राजनीतिक नेतृत्व में हिंसक
परिवर्तन के
कारण मानवाधिकार उल्लंघन की
हिंसक यातना
न सहनी
पड़े।
हमारी अपील
की है
कि संयुक्त राष्ट्र की
वीटो पावर
प्रणाली अफगानिस्तान पर कार्रवाई के लिए
एक सार्वभौमिक जनादेश के
निर्माण के
लिए अनुकूल नहीं है
क्योंकि चीन
के पास
वीटो पावर
है और
वह वैश्विक आतंकवाद के
केन्द्र पाकिस्तान के साथ
मिलकर अफगानिस्तान में शान्ति व सुरक्षा की कार्यवाही पर वीटो
पावर का
इस्तेमाल कर
सकता है।
ऐसे में,
प्रधानमंत्री मोदी
को दुनिया के तमाम
नेताओं की
तत्काल बैठक
बुलानी चाहिए। प्रधानमंत्री श्री
मोदी जी
को अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय का
व्यापक समर्थन प्राप्त है
और अफगानिस्तान के मुद्दे पर दुनिया के देशों
से एकजुट
होने के
उनके आहवान
को निश्चित रूप से
बहुत गंभीरता से लिया
जाएगा।
भारत की
‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ की
महान संस्कृति एवं सभ्यता को जिस
प्रकार से
सारे विश्व
के समक्ष,
न केवल
भारत के
माननीय प्रधानमंत्री के रूप
में, वरन् एक परिपक्व वर्ल्ड लीडर
के रूप
में श्री
नरेन्द्र मोदी
जी ने
सदैव रखा
है, उसके लिए श्री
मोदी जी
को ढेर
सारी बधाइयाँ हैं। आपने
विश्व के
सात सौ
करोड़ से
अधिक लोगों
के भविष्य के प्रति
सदैव अपनी
चिन्ता जतायी
है तथा
विश्व के
सभी देशों
को इसमें
भागीदारी निभाने को प्रेरित किया है।
आपने बिलकुल ठीक कहा
है कि
विश्व में
जी-8, जी-20 आदि अनेक
ग्रुप हैं
लेकिन अब
जी-ऑल
गु्रप की
आवश्यकता है
और हमें
यह ध्यान
देना चाहिए
कि हम
कैसे संयुक्त राष्ट्र संघ
को प्रजातांत्रिक, शक्तिशाली तथा
और अधिक
प्रभावशाली बना
सकते है।
सिटी मोन्टेसरी स्कूल, लखनऊ के लगभग
55,000 से अधिक
बच्चों तथा
भारत के
लगभग 40 करोड़ बच्चों तथा
विश्व दो
अरब बच्चों तथा आगे
जन्म लेने
वाली पीढ़ियों के स्वतः
निर्मित अभिभावक की हैसियत से मैं
श्री मोदी
जी से
विश्व संसद
के गठन
की प्रक्रिया ‘यूरोपीय संसद’ की
तरह शुरू
करने की
अपील करता
हूँ। ‘यूरोपीय संसद’
के गठन
के लिए
फ्रांस के
प्रधानमंत्री श्री
राबर्ट शूमेन
ने यूरोपीय देशों के
नेताओं की
एक बैठक
बुलाने की
पहल की
थी। इस
पहली बैठक
में 76 यूरोपीय संसद सदस्यों ने प्रतिभाग किया जिसके
परिणाम स्वरूप यूरोपीय यूनियन व 28 यूरोपीय देशों की
एक ‘यूरोपीय संसद’
गठित की
गई। इस
यूरोपीय संसद
की वजह
से आज
पूरे यूरोप
में स्थायी एकता व शांति स्थापित है। आज
यूरोपीय यूनियन में 28 यूरोपीय देश पूर्ण
सदस्य राज्यों की तरह
से हैं।
यूरोपीय यूनियन के 18 देशों ने अपनी
राष्ट्रीय मुद्रा को समाप्त कर ‘यूरो’ मुद्रा को अपनी
राष्ट्रीय मुद्रा के रूप
में अपनाया है।
हम गर्व के
साथ कह
सकते है
कि संयुक्त राष्ट्र संघ
महासभा में
श्री मोदी
जी ने
हमारे सशक्त
प्रधानमंत्री, हमारे नागरिकों, हमारी संस्कृति तथा
हमारी आशा
तथा विश्वास का प्रतिनिधित्व किया है।
संयुक्त राष्ट्र संघ महासभा में श्री
मोदी जी
के विश्वव्यापी एवं मानवीय विचारों ने
सारे विश्व
नेताओं के
मन-मस्तिष्क में गहरा
असर किया
है। संयुक्त राष्ट्र संघ
महासभा में
उस अवसर
पर उपस्थित सदस्य देश
के प्रतिनिधि अपने-अपने
देश में
विश्व एकता
तथा विश्व
शान्ति का
सन्देश लेकर
गये हैं।
‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ अर्थात् सारा ‘विश्व एक परिवार है’
की भारतीय संस्कृति के
आदर्श की
एक महान
वर्ल्ड लीडर
की भूमिका श्री मोदी
जी पूरे
मनोयोग से
निभा रहे
हैं। ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’
का लक्ष्य सारे विश्व
के लिए
श्री मोदी
जी ने
निर्धारित किया
है। श्री
मोदी जी
के विचार,
दर्शन तथा
सपना विश्व
के सभी
लोगों पर
अच्छा व गहरा असर
डाल रहे
हैं।
हम सभी
जानते हैं
कि 1919 में अमेरिका के
तत्कालीन राष्ट्रपति श्री वुडरो
विल्सन ने
विश्व शांति
के लिए
विश्व के
नेताओं की
एक बैठक
आयोजित की,
जिसके फलस्वरूप ‘लीग ऑफ
नेशन्स’
की स्थापना हुई। अमेरिका के ही
तत्कालीन राष्ट्रपति श्री फ्रैन्कलिन रूजवेल्ट ने
1945 में विश्व
के नेताओं की एक
बैठक बुलाई
जिसकी वजह
से 24 अक्टूबर, 1945 को ‘संयुक्त राष्ट्र संघ’ (यू.एन.ओ.)
की स्थापना हुई। फ्रांस के प्रधानमंत्री श्री राबर्ट शूमेन ने
यूरोपीय देशों
के नेताओं की एक
बैठक बुलाने की पहल
की। इस
पहली बैठक
में 76 यूरोपीय संसद सदस्यों ने प्रतिभाग किया जिसके
परिणामस्वरूप यूरोपीय यूनियन व
28 यूरोपीय देशों
की एक
‘यूरोपीय संसद’ गठित
की गई।
विश्व
के इन
तीन महान
नेताओं के
(1) अमेरिका के
पूर्व राष्ट्रपति श्री वुडरो
विल्सन (2) अमेरिका के ही
पूर्व राष्ट्रपति श्री फ्रैन्कलिन रूजवेल्ट तथा
(3) फ्रांस के
प्रधानमंत्री श्री
राबर्ट शूमेन
के बाद
अब श्री
मोदी जी
संयुक्त राष्ट्र महासभा में
तथा अन्य
वैश्विक मीटिंगों में विश्व
के सभी
देशों के
नेताओं को
विश्व में
शांति स्थापना के लिए
एकजुट होने
के लिए
प्रेरित कर
रहे हैं।
हम प्रबल
आशा के
साथ श्री
मोदी जी
से निवेदन करना चाहेंगे कि वह
विश्व एकता
की दिशा
में अगला
कदम शीघ्र
उठाकर विश्व
के सभी
देशों के
शासनाध्यक्षों की
एक मीटिंग बुलाने की
कृपा करें।
जिसमें श्री
मोदी जी
की अगुवाई में यूरोपियन संसद की
तरह एक
चयनित और
अधिक प्रजातांत्रिक विश्व संसद
के गठन
का प्रबल
विचार रखा
जा सके।
यूरोपियन संसद
का गठन
आज विश्व
के समक्ष
सबसे अच्छा
उदाहरण है,
जो कि
उनकी नेशनल
पार्लियामेन्ट के
ऊपर है।
यहाँ उल्लेखनीय है कि
यूरोपियन संसद
का गठन
बिना संबंधित देशों ने
अपनी संप्रभुता में किसी
प्रकार की
कटौती के
की है।
विश्व के
अनेक महान
पुरूषों एवं
विचारकों व राजनेताओं के
द्वारा यह
दोहराया जा
चुका है
कि विश्व
संसद ही
विश्वव्यापी समस्याओं का समाधान आसानी से
कर सकती
है। मुझे
पूरा विश्वास है कि
विश्व के
लगभग दो
अरब तथा
चालीस करोड़
बच्चों तथा
आगे जन्म
लेने वाली
पीढ़ियों के
सुरक्षित भविष्य के प्रयास में सारा
विश्व समुदाय विश्व एकता
के प्रबल
समर्थक भारत
के साथ
खड़ा होगा।
विश्व संसद
के गठन
से देशों
के बीच
होने वाले
युद्धों तथा
अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद की समाप्ति हो जायेगी। जिसके फलस्वरूप में एक
नई वैश्विक लोकतांत्रिक व्यवस्था (विश्व संसद)
का गठन
समय रहते
होगा। साथ
ही उसके
पश्चात मानव
सभ्यता की
गुफाओं से
शुरू हुई
यात्रा का
अन्तिम लक्ष्य सारी धरती
पर वसुधैव कुटुम्बकम् के
अन्तर्गत आध्यात्मिक सभ्यता की
स्थापना से
पूरा होगा।
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