स्कूली (क्लास रूम) शिक्षा का कोई विकल्प नहीं!

-डाॅ. जगदीश गाँधी, शिक्षाविद् एवं

संस्थापक-प्रबन्धक, सिटी मोन्टेसरी स्कूल, लखनऊ।

कोरोना काल में सबसे ज्यादा बच्चों की शिक्षा प्रभावित:

वैश्विक कोरोना महामारी के वर्तमान काल में भारत के साथ ही विश्व के अधिकांश देशों के बच्चों की शिक्षा  व्यवस्था सबसे ज्यादा प्रभावित रही है। भारत में मार्च, 2020 से ही लगातार स्कूल और काॅलेज बंद चल थे जिसे अब देश के कई राज्यों द्वारा या तो खोल दिया गया है या फिर धीरे-धीरे खोलने की घोषण की जा रही है। उत्तर प्रदेश सरकार ने भी बच्चों के हित में 16 अगस्त 2021 से कक्षा 9 से कक्षा 12 तक के छात्रों के लिए, उनकी सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए, स्कूलों को खोलने की अनुमति प्रदान कर दी है। हमारा मानना है कि कोरोन महाकारी के कारण देश के कुछ स्कूलों ने आॅनलाइन पढ़ाई के माध्यम से बहुत हद तक बच्चों की शिक्षा पर पड़ने वाले दुष्प्रभाव को रोकने में कामयाबी तो पायी है, लेकिन यह आॅनलाइन शिक्षा व्यवस्था भारत जैसे देश में, जहाँ की अधिकांश जनता गाँवों में निवास करती है, कभी भी स्कूली शिक्षा का विकल्प नहीं बन सकती।

शिक्षा समानता लाने का सबसे सशक्त माध्यम:

शिक्षा में समानता का अर्थ है कि सभी विद्यार्थियों तक शिक्षा की समान पहुँच तथा जाति, वर्ग, प्रदेश, धर्म, लिंग आदि के भेदभाव के बिना समान अवसरों की प्राप्ति। लेकिन यह हमारे देश के गरीब एवं कमजोर वर्ग के बच्चे का दुर्भाग्य है कि कोरोना महामारी के इस काल में उन्हें स्मार्टफोन और इण्टरनेट के अभाव में आॅनलाइन कक्षाओं से वंचित रहना पड़ा हैं। इसके कारण इन बच्चों को समान रूप से शिक्षा नहीं मिल रही है, जबकि शिक्षा समानता लाने का सबसे सशक्त माध्यम है। वास्तव में आॅनलान शिक्षा सिर्फ सीखने-सिखाने की प्रक्रिया को जारी रखने का एक जरिया मात्र है। स्कूल की कक्षाओं में आमने-सामने बैठ कर बच्चांे को जैसी शिक्षा और विकास मिलता है, वह आॅनलाइन शिक्षा में संभव नहीं है।

छात्रों का मत - आॅनलाइन शिक्षा को केवल एक विकल्प के रूप में देखा जाये:-

कुछ समय पूर्व आॅनलाइन शिक्षा की चुनौती विषयक एक वेबिनार में कई स्कूलों एवं काॅलेजों के छात्र-छात्राओं ने कहा कि आॅनलाइन पढ़ाई के कारण हमारी पढ़ाई तो बाधित नहीं हो रही है, लेकिन क्लास रूम शिक्षा का एक अलग ही महत्व होता है। आॅनलाइन क्लासेज से हम थोड़ी राहत जरूर महसूस कर रहे हैं लेकिन आॅनलाइन शिक्षा को केवल एक विकल्प के रूप में देखा जाये तो ठीक है। इस प्रकार मूलभूत सुविधाओं के अभाव में और शिक्षा के मूल उद्देश्य को पूरा कर पाने के कारण आॅनलाइन शिक्षा कभी भी स्कूली शिक्षा का विकल्प कतई नहीं बन सकती। इसके साथ ही लम्बी अवधि तक आॅनलाइन कक्षाओं को संचालित करना बच्चों के शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी ठीक नहीं है।

फेस-टू-फेस सीखना राष्ट्र के लिए ज्यादा बेहतर: यूनेस्को

आॅनलाइन शिक्षा को लेकर संयुक्त राष्ट्र की दो शाखाओं यूनेस्को और यूनिसेफ ने इस बात को लेकर चेताया है कि यह कुछ समय के लिए कारगार हो सकती है, लेकिन इन्हें बड़े पैमाने पर अपनाने से पहले सोचना होगा, क्योंकि यह किसी बड़े बदलाव के खिलाफ एक चेतावनी साबित हो सकती है। दरअसल, इनका कहना है कि अगर इसे बड़े पैमाने पर अपनाया गया तो यह समाज में सामाजिक और आर्थिक रूप से असमानता को जन्म देगा और समय के साथ-साथ इस असमानता को गहरा कर देगा। संयुक्त राष्ट्र शैक्षणिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) ने कहा है कि एजुकेशन पाने के लिए ये सोचना गलत है कि आनलाइन सीखना हर किसी के लिए आगे का रास्ता खोलता है। क्योंकि आनलाइन पढ़ाई से दूर दराज के इलाकों में रह रहे बच्चे आनलाइन पढ़ाई नहीं कर सकते, इसलिए यह गरीब और अमीरी को बढ़ाता है। यूनेस्कों ने कहा है कि यह केवल गरीब देशों में बल्कि अमीर देशों में असमानता को बढ़ावा देगा। इसलिए यूनेस्को यह सलाह देता है कि लाकडाउन के बाद फेस टू फेस सीखना राष्ट्र के लिए ज्यादा बेहतर रहेगा।

स्कूली (क्लास रूम) शिक्षा का कोई विकल्प नहीं:

यूनीसेफ के शिक्षा मामलों के वैश्विक प्रमुख राॅबर्ट जैनकिन्स का कहना है कि ‘‘दुनियाँ भर में स्कूल बंद रहने के दौरान, आॅनलाइन शिक्षा, बहुत से बच्चों के लिए जीवन रेखा साबित हुई है, लेकिन कमजोर हालात वाले बहुत से बच्चों के लिए, आॅनलाइन शिक्षा भी पहुंच के बाहर थी। यह बहुत जरूरी और तात्कालिक है कि हम हर बच्चे को, अब फिर से क्लास रूम स्कूली शिक्षा में शामिल करें। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के डायरेक्टर डाॅ. रणदीप गुलेरिया ने .एनआई. को दिये बयान में कहा है कि हमें स्कूल खोलने पर आक्रामक रूप से काम करना चाहिए, क्योंकि इसने युवा पीढ़ी को ज्ञान के मामले में वास्तव में प्रभावित किया है। खा़सतौर पर हाशिये पर रहने वाले गरीब बच्चे, जो आॅनलाइन कक्षाओं के लिए नहीं जा सकते, वे इससे ज्यादा पीड़ित हैं। उन्होंने यह भी कहा कि आॅनलाइन कक्षाओं से कहीं ज्यादा फिजिकल स्कूल उपयोगी होते हैं, साथ ही यह भी कहा कि स्कूल में छात्रों और अन्य गतिविधियों को लेकर बातचीत होती है, जो बच्चों के चारित्रिक विकास में बहुत मदद करती है।

शिक्षा के महान उद्देश्य की पूर्ति केवल परम्परागत स्कूली शिक्षा के माध्यम से ही:-

शिक्षा का परम उद्देश्य प्रत्येक बच्चे को सर्वश्रेष्ठ भौतिक शिक्षा के साथ ही साथ उसे मानवीय एवं आध्यात्मिक शिक्षा प्रदान करके उसे एक अच्छा इंसान बनाना है। स्कूल शिक्षा में बच्चे स्कूल में आकर केवल गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्राप्त करते हंैे, बल्कि इसके साथ ही साथ अप्रत्यक्ष रूप से उनके चरित्र का निर्माण, सह-अस्तित्व सहयोग, सामूहिकता एवं वैचारिक सहिष्णुता आदि प्रक्रियाओं के माध्यम से उनके व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास भी होता रहता है, जो आॅनलाइन पढ़ाई के द्वारा कभी भी संभव नहीं है। वास्तव में आॅनलाइन पढ़ाई के द्वारा शिक्षा के महान उद्ेदश्य की पूर्ति कभी भी नहीं हो सकती। शिक्षा के महान उद्देश्य की पूर्ति केवल परम्परागत स्कूली शिक्षा के माध्यम से ही संभव है।

----

 

Comments

Popular posts from this blog

Chief Secretary Shri Durga Shanker Mishra felicitates CMS meritorious students

CMS student excels in IGCSE (Cambridge Board) exams

Government of India to award Rs 88 lakh INSPIRE Scholarship to 22 CMS students