जिन्दगी एक भोर है सूरज की तरह प्रकाश बिखेरते रहे!
डॉ. जगदीश गाँधी, शिक्षाविद् एवं
संस्थापक-प्रबन्धक, सिटी मोन्टेसरी स्कूल, लखनऊ
(1) सूरज की तरह प्रकाश बिखेरते रहे
:-
होके मायूस ना यूँ शाम की तरह ढलते रहिए, जिन्दगी एक भोर है सूरज की तरह प्रकाश
बिखेरते रहे। ठहरोगे एक पाँव पर तो थक जाओगे, धीरे-धीरे ही बेशक, सही राह पर चलते रहिए। कर्म करने
से हार या जीत कुछ भी मिल सकती हैं, लेकिन कर्म न करने से केवल हार ही
मिलती है। क्यों डरें कि जिंदगी में क्या होगा, हर वक्त क्यों सोचें कि बुरा होगा।
बढ़ते रहें मंजिलों की ओर हम कुछ न भी मिला तो क्या? तजुर्बा तो नया होगा। जो शक्ति न
होते हुए भी मन से हार नहीं मानता, उसको दुनिया की कोई ताकत परास्त
नहीं कर सकती। अपने लक्ष्य में कामयाब होने के लिए, आपको अपने लक्ष्य के प्रति एकाग्रचित
होना पड़ेगा।
(2) जैसे मनोभावों को हम स्वयं में बढ़ावा
देंगे, उसी की जीत
होगी :-
एक वृद्ध अमेरिकी व्यक्ति अपने पोते-पोतियों को अपने मन की बात बता रहा था। उसने
बच्चों को बताया, ‘उसके मन के
अंदर एक संघर्ष चल रहा है। एक पक्ष है- भय, क्रोध, ईर्ष्या, शोक, पश्चाताप, लोभ, द्वेष, हीनता, अभिमान, अहंकार आदि का। दूसरा पक्ष है- आनंद, हर्ष, शांति, प्रेम, आशा, विनम्रता, परोपकारिता, सहानुभूति, दानशीलता, उदारता, सत्यता, विश्वास आदि का। संभव है कि ऐसा
संघर्ष तुम्हारे अंदर और अन्य व्यक्तियों में भी चल रहा होगा। कुछ क्षण के लिए बच्चे
सोच में डूब गए। तब एक बच्चा बोला- ‘दादा जी! अंत में किस पक्ष की जीत
होगी? वृद्ध व्यक्ति
बोला, ‘हम जिसे जिताना
चाहेंगे, यानी जैसे
मनोभावों को हम स्वयं में बढ़ावा देंगे, उसी की जीत होगी।’
(3) सब सौंप दो प्यारे प्रभु को सब सरल
हो जायेगा :-
कैसे चुकाऊँ इन साँसों का मोल रे, जन्म देने वाले इतना तो बोल रे।
सांसों का खजाना यूँ ही न लूटाना। प्रभु के काम आना, प्रभु के काम आना। मैं कौन हूँ ? इसका आभास होते ही सच्चे जीवन में
सच्चे रिश्ते बनने लगेंगे। प्रत्येक काम केवल प्रभु के नाम, जीवन जीना हो जाए बेहद आसान फिर
कोई नहीं कहेगा माया मिली न राम। सब सौंप दो प्यारे प्रभु को सब सरल हो जायेगा। खुशियों
की सुन्दर झील में जीवन कमल खिल जायेगा। है जो भी तेरे पास सब उसकी अमानत है, अपनी समझ लेना अमानत में खयानत है।
वह व्यक्ति जिसे आसानी से धोखा दिया जा सकता है, वह स्वयं आप हैं।
(4) जो कर ले ठीक गलती को उसे इंसान
कहते है :-
यदि हम गलती करके स्वयं को सही सिद्ध करने का प्रयास करते है तो समय हमारी मूर्खता, पर हंसेगा। अपनी सूक्ष्म कमजोरियों
का चिंतन करके उन्हें मिटा देना- यही ‘स्व-चिंतन’ है। एक छोटी-सी रबर चेयरमैन की पेंसिल
पर भी होती है। आखिर गलतियां किससे नहीं होतीं? इसलिए अपनी गलतियां स्वीकार करने
में डरने की जरूरत नहीं है। हर बार कोई भी बिलकुल सही नहीं हो सकता। समझदारी इसी में
है कि जब गलती हो तो उसे फटाफट मानने से न कतराए। मनुज गलती का पुतला है वह अक्सर हो
ही जाती है। जो कर ले ठीक गलती को उसे इंसान कहते है। गलतियां सुधारने में ही समझदारी
है।
(5) उठो, सुनो प्राची से उगते सूरज की आवाज
:-
जीवन को दो प्रकार के दुखों का सामना करना पड़ता है- बाहरी और भीतरी। भौतिक अभिलाषाओं
की पूर्ति न होने से बाहरी दुख उत्पन्न होते हैं और अन्तर्मन में उठने वाली अभिलाषाओं
से भीतरी दुखों का सर्जन होता है। जीवन के बाहरी और भीतरी संघर्षों का मुकाबला सदा
जीतने के भाव से करना चाहिए। उनसे बच कर भागने के बजाय उनका दृढ़तापूर्वक सामना करना
चाहिए, तभी सही मार्ग
निकल सकता है। उठो, सुनो प्राची
से उगते सूरज की आवाज....! धीरे धीरे मोड़ इस मन को इस मन को तू इस मन को। मन मोड़ा तो
फिर डर नहीं फिर दूर प्रभु का घर नहीं। हम रोज रोज अच्छे बनते जाते हैं। हम रोज रोज
उस परम शक्ति की ओर बढ़ते जाते हैं।
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