हम सभी तभी तक सुरक्षित हैं, जब तक हमारा पर्यावरण सुरक्षित है!
-डॉ. जगदीश गाँधी, प्रख्यात शिक्षाविद् एवं
संस्थापक-प्रबन्धक, सिटी मोन्टेसरी स्कूल, लखनऊ
(1) दुनियाँ में बदलते मौसम के कारण प्राकृतिक आपदाएं बढ़ रही हैं:-
कोरोना महामारी के
साथ ही
इन दिनों
विश्व के
कई देश
प्राकृतिक आपदाओं के चपेट
में आते
जा रहें
हैं। इंटरनेशनल डिजास्टर रिस्क
रिडक्शन डे
के मौके
पर संयुक्त राष्ट्र द्वारा जारी रिपोर्ट में कहा
गया कि
पिछले दो
दशकों में
आपदाएं 75 फीसदी बढ़ी हैं।
आपदाओं का
सर्वाधिक सामना
कर रहे
देशों में
चीन, अमेरिका के बाद
भारत तीसरे
नंबर पर
है। चीन
में करीब
600, अमेरिका में
467 तथा भारत
में 300 से ज्यादा प्राकृतिक आपदाएं दर्ज
की गई
हैं। अन्य
देशों में
फिलीपींस, इंडोनेशिया, जापना, वियतनाम, मैक्सिको, बांग्लादेश तथा अफगानिस्तान शामिल हैं।
2021 की गर्मियों में ही
उत्तर पश्चिमी प्रशांत क्षेत्र में बढ़ते
तापमान से
पश्चिमी कनाडा
और अमेरिका के आरेगन,
कैलिफोर्निया, पोर्टलैंड व वाशिंगटन जैसे राज्यों में गर्मी
के सारे
रिकार्ड टूट
गए हैं।
(2) हम सभी तभी तक सुरक्षित हैं, जब तक हमारा पर्यावरण सुरक्षित है:-
प्रकृति और पर्यावरण के प्रति
समन्वय बनाये
रखना हम
सबका नैतिक
कर्तव्य भी
है और
सामाजिक उत्तरदायित्व भी। एक
ओर जहाँ
अभी हॉल
ही में
ठंडे और
कोहरे में
लिपटे मौसम
के लिए
मशहूर अमेरिका के उत्तर
पश्चिमी इलाकों में गर्मीं से सैकड़ों लोगों की
जान चली
गयी। कनाडा
में जंगलों की आग
ने एक
समूचे गांव
का अस्तित्व खत्म कर
डाला है।
अंर्टाकटिका के
बाद रूस
का साइबेरिया विश्व की
सबसे सर्द
जगह है।
लेकिन पिछले
तीन साल
से उत्तर
पूर्व साइबेरिका जंगलों की
भीषण आग
का सामना
कर रहा
है। तो
वहीं दूसरी
ओर जर्मनी और बेल्जियम में रिकॉर्ड बारिश के
बाद नदियों के उफान
पर आने
से बाढ़
से भारी
तबाही हुई।
कई लोगों
की मौत
हो गयी
तो कई
लापता हो
गये। बारिश
का पानी
बाढ़ के
रूप में
कहर बनकर
बहा।
(3) अगले पॉच सालों में धरती का तापमान 40 फीसदी बढ़ सकता है:-
विश्व मौसम विभाग
(डब्लू.एम.ओ.) ने चेतावनी जारी
करते हुए
कहा है
कि अगले
पॉच सालों
में धरती
का तापमान 40 फीसदी बढ़
सकता है।
इससे गर्मी
के सारे
रिकार्ड टूट
जायेंगे। जिससे
पेरिस पर्यावरण समझौते के
तहत किये
जा रहे
प्रयासों पर
भी प्रश्न चिन्ह लग
सकता है।
इस संगठन
के विशेषज्ञों की चेतावनी से भरी
भविष्यवाणियां कहतीं
हैं कि
2025 सबसे गर्म
साल होने
का रिकार्ड तोड़ देगा।
डब्लू.एम.ओ. के सेक्रेटरी जनरल
प्रोफेसर पेटेरी टालस ने
कहा कि
लगातार बढ़
रहे तापमान की वजह
से बर्फ
पिघल रही
है, समुद्री जल स्तर
में इजाफा
हो रहा
है, ज्यादा गर्म हवायें देखने को
मिल रही
है। .. यह पूरी धरती
पर असर
डालेगा। जिसका
असर धरती
के हर
रहने लायक
इलाके में
रह रहे
लोगों और
जीवों पर
होगा, क्योंकि आस्ट्रेलिया और
कैलिफोर्निया के
जंगलों की
आग, हिम खंडों का
टूटना, ग्लेशियरों का गायब
हो जाना
ये बढ़ते
तापमान का
ही नतीजा
है।
(4) जलवायु परिवर्तन के प्रभाव किसी एक राज्य तक ही सीमित नहीं है:-
यह आपदा जलवायु परिवर्तन का
परिणाम है।
इसका मतलब
है कि
हमें जलवायु संरक्षण के
उपायों को
तेज करने
की जरूरत
है, क्योंकि जलवायु परिवर्तन के प्रभाव किसी एक
राज्य तक
ही सीमित
नहीं है।
संयुक्त राष्ट्र की मौसम
एजेंसी ने
कहा है
कि बेल्जियम, जर्मनी, लक्ज़मबर्ग और नीदरलैण्ड में आमतौर
पर जितनी
बारिश दो
महीनों में
होती है,
उतनी बारिश
14 और 15 जुलाई को केवल
दो दिनों
में रिकार्ड की गई
है। विश्व
मौसम संगठन
की प्रवक्ता क्लेयर न्यूलिस ने कहा,
“हमने मकान
बह जाने
की तस्वीरें देखी हैं...
यह दिल
दहला देने
वाला दृश्य
है.”
(5) जलवायु परिवर्तन के कारण पूरे ग्रह का भविष्य दांव पर लगा है:-
वैश्विक तपन और
जलवायु परिवर्तन को लेकर
दुनियाँ भर
में बहस
भी लंबे
समय से
चल रही
है। कुछ
देश इस
मुद्दे पर
साथ मिलकर
काम करने
को तैयार
हैं तो
कुछ इसकी
चिंताओं को
नजरअंदाज करते
हुए अपने
यहां अंधाधुंध औद्योगिक विकास
को बढ़ावा
दे रहे
हैं। स्विटजरलैण्ड के दावोस
शहर में
विश्व आर्थिक मंच की
बैठक के
दौरान संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने कहा
है कि
अगर विश्व
के प्रमुख औद्योगिक देशों
ने अपने
कार्बन उत्सर्जन में कटौती
नहीं की
तो जलवायु परिवर्तन मानवता के लिए
अभिशाप बन
कर रह
जायेगा। गुटेरस ने वैश्विक समुदाय से
अपील की
है कि
जलवायु परिवर्तन के लिये
समझदारी भरे
निर्णयों की
जरूरत है,
क्योंकि पूरे
ग्रह का
भविष्य दांव
पर लगा
है और
कोई भी
अकेला देश
जलवायु परिवर्तन को रोक
नहीं सकता।
इसलिए इसके
लिये पूरी
दुनियाँ को
मिलकर प्रयास करना होगा,
जिसके लिए
राजनैतिक इच्छाशक्ति और कायापलट कर देने
वाली नीतियों की जरूरत
है।
(6) हमें अपने बच्चों और नाती-पोतों का भविष्य सुनिश्चित करने की जरूरत है:-
पेरिस समझौते की
पांचवी वर्षगांठ के अवसर
पर 2020 जलवायु परिवर्तन शिखर
सम्मेलन को
सम्बोधित करते
हुए संयुक्त राष्ट्र महासचिव गुटेरेस ने
कहा कि
‘‘जब तक
हम ‘कार्बन न्यूट्रैलिटी’ की स्थिति प्राप्त नहीं कर
लेते, तब तक जलवायु आपातकाल की
स्थिति घोषित
की जाये।’’
गुटेरेस ने
इस बात
पर जोर
दिया कि
सभी देशों
को अपनी
भावी पीढ़ियों के लिए
पृथ्वी को
बचाने की
मुहिम में
आगे आना
चाहिए। उन्होंने कहा कि
‘‘मैं हर
किसी से
आग्रह करता
हूँ कि
वह प्रतिबद्धता दिखाएं और
हमारे पृथ्वी के दोहन
पर लगाम
लगाएं। हमें
अपने बच्चों और नाती-पोतों का
भविष्य सुनिश्चित करने की
जरूरत है।’’
(7) किसी भी देश के बच्चों का भविष्य सुरक्षित नहीं है:-
विश्व स्वास्थ्य संगठन,
यूनिसेफ और
नामी मेडिकल जर्नल ‘द लान्सेट’ की एक संयुक्त रिपोर्ट के
अनुसार पर्यावरण में बदलाव
के कारण
किसी भी
देश के
बच्चों का
भविष्य सुरक्षित नहीं है।
रिपोर्ट में
कहा गया
है कि
पिछले 20 वर्षों में शिक्षा, पोषण और
जीवन काल
में बढ़ोत्तरी के बावजूद बच्चों का
अस्तित्व संकट
में है।
विश्व भर
के 40 विशेषज्ञों द्वारा तैयार
रिपोर्ट के
अनुसार ‘पर्यावरण आपातकाल’ के इस दौर
में बच्चों के सुरक्षित भविष्य के
लिए बदलावों की आवश्यकता है। रिपोर्ट तैयार करने
वाले विशेषज्ञों ने ऐसे
कदम उठाने
की जरूरत
बताई है,
जिससे बच्चों के अधिकार सुरक्षित रहें
और वे
बेहतर जिंदगी जी सकें।
(8) हम अपने बच्चों के भविष्य को खतरे में नहीं डाल सकते हैं:-
जिस पृथ्वी का
वातावरण कभी
पूरे विश्व
के लिए
वरदान था
आज वहीं
अभिशाप बनता
जा रहा
है। ये
भविष्य के
लिए खतरे
की घंटी
है। यदि
इन प्राकृतिक संसाधनों को
बचाने और
सहेजने के
लिए अभी
से कड़े
कदम नहीं
उठाए गए
तो आने
वाले कुछ
सालों में
इसके भयानक
परिणाम देखने
को मिलेंगे। नवम्बर, 2020 में नई दिल्ली में बाल
दिवस के
अवसर पर
आयोजित बाल
संसद में
बोलते हुए
देश के
उपराष्ट्रपति माननीय श्री वेंकैया नायडू ने
कहा ‘‘भारत और दुनियाँ एक निर्णायक मोड़ पर
खड़ी है।
हमारे बच्चे
जलवायु परिवर्तन के कारण
जबरदस्त संकट
में हैं
और नीति
निर्धारक, नेता, समाज के
सदस्य, माता-पिता और
दादा-दादी
के रूप
में, यह केवल हम
ही हैं,
जो उनके
बचाव में
आगे आ सकते हैं।
हम उदासीनता के कारण
अपने बच्चों के भविष्य को खतरे
में नहीं
डाल सकते
हैं। ’’
(9) ‘विश्व संसद ‘विश्व सरकार व ‘विश्व न्यायालय का गठन आवश्यक:-
हमारा मानना है
कि जलवायु परिवर्तन जैसे
मुद्दे भौगोलिक सीमाओं से
बंधे हुए
नहीं होते
हैं। प्रकृति का कहर
किसी देश
की सीमाओं को नहीं
जानती। वह
किसी धर्म
किसी जाति
व किसी
देश व उसमें रहने
वाले नागरिकों को पहचानती भी नहीं।
वास्तव में
वह समय
आ चुका
है जबकि
पर्यावरण असंतुलन पर केवल
विचार-विमर्श के लिए
बैैठकें आयोजित करने की
बजाय विश्व
के सारे
देशों को
ठोस पहल
करने के
लिए एक
मंच पर
आकर तत्काल विश्व संसद,
विश्व सरकार
और विश्व
न्यायालय के
गठन पर
सर्वसम्मति से
निर्णय लेना
चाहिए, अन्यथा बदलता जलवायु, गर्माती धरती
और पिघलते ग्लेशियर पृथ्वी के अस्तित्व को ही
संकट में
डाल देंगे।
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