प्रभु का स्मरण करने का रास्ता भी एक है तथा मंजिल भी एक है!


 

- डा0 जगदीश गांधी, शिक्षाविद् एवं संस्थापक-प्रबन्धक,

सिटी मोन्टेसरी स्कूल, लखनऊ

(1) प्रभु का स्मरण करने का रास्ता भी एक है तथा मंजिल भी एक है:-

               विश्व भर में धर्म के नाम पर जो लड़ाई-झगड़े हो रहे हैं, उसके पीछे एकमात्र कारण धर्म के प्रति लोगों का अज्ञान है। प्रायः लोग कहते हैं कि प्रभु का स्मरण करने के अलग-अलग धर्म के अलग-अलग रास्ते हैं किन्तु मंजिल एक है। परन्तु सभी धर्मों के पवित्र ग्रन्थों के अध्ययन के आधार पर हमारा मानना है कि प्रभु को स्मरण करने का रास्ता भी एक है तथा मंजिल भी एक है। प्रभु की इच्छा आज्ञा को जानना तथा उस पर दृढ़तापूर्वक चलते हुए प्रभु का कार्य करना ही प्रभु को स्मरण करने का एकमात्र रास्ता है। इस प्रकार मनुष्य जीवन केवल दो कामों के लिए (पहला) प्रभु की शिक्षाओं को भली प्रकार जानने तथा (दूसरा) उसकी पूजा (अर्थात प्रभु का कार्य) करने के लिए हुआ है।

(2) हे परमात्मा, मेरी सहायता कर कि मैं तेरी सेवा के योग्य बनूँ:-  

               परमात्मा का अंश होने के कारण हमारी आत्मा, अजर और अमर है जबकि हमारा शरीर अस्थायी है और मृत्यु के बाद में मिट्टी में मिल जायेगा। यह मनुष्य के विवेक पर निर्भर है कि अच्छे कार्य करके वह अपनी आत्मा का विकास करें या बुरे कार्य करके वह अपनी आत्मा का विनाश कर ले। भगवान की नौकरी करने जायेंगे तो वह पूछेंगे कि तुम्हारे अंदर क्या-क्या गुण हैं? भगवान की नौकरी सबसे अच्छी है। यदि वह मिल जायें तो सब कुछ मिल गया। इसलिए हमारी प्रभु से प्रार्थना है कि हे प्रभु हमारा कोई मनत्व ऐसा हो जो आपकी इच्छा तथा आज्ञा के विरूद्ध हो। हमारी इन्द्रियाँ तथा मन हमारे वश में हो। हमारे प्रत्येक कार्य के पीछे छिपा हुआ उद्देश्य पवित्र हो और कोई भी स्वार्थ का विचार हमें प्रभु का कार्य तथा मानव जाति की सेवा से विचलित कर सके। हे परमात्मा, मेरी सहायता कर कि मैं तेरी सेवा के योग्य बन सकूँ।

(3) केवल हमारा मन हमें अच्छे कार्य करने से रोकता है:- 

               मनुष्य जीवन की यात्रा में हमें प्रभु का कार्य करने के लिए शरीर रूपी यंत्र मिला हुआ है। परमात्मा ने विशेष कृपा करके शरीर रूपी मशीन फ्री ऑफ चार्ज प्रभु का कार्य करने के लिए हमें दी है। इसके साथ ही पशु तथा मनुष्य दोनों को स्वतंत्र इच्छा शक्ति मिली है लेकिन मनुष्य को अच्छे-बुरे का विचार करने की शक्ति विशेष अनुदान के रूप में मिली है जबकि पशु को अच्छे-बुरे का विचार करने की शक्ति नहीं मिली है। हमारा यह पूर्ण विश्वास है कि यदि हम अपने मन में अच्छे विचार लायेंगे तो हमें जीवन में अच्छे कार्य करने की प्रेरणा मिलेगी। महापुरूषों के जीवन में देखे तो वे साधारण से असाधारण व्यक्ति अच्छे विचारों तथा अच्छे कार्यो के कारण ही बने।

(4) हम प्रभु का कार्य करके अपने मन, बुद्धि, आत्मा तथा हृदय को पवित्र बनायें:-

               हमें अच्छा कार्य करने से कौन रोकता है? केवल हमारा मन हमें अच्छे कार्य करने से रोकता है। इसके अलावा धरती तथा आकाश की कोई भी ताकत हमें अच्छे कार्य करने से रोक नहीं सकती। यदि हम मन के अंदर महान बनने के विचार लायेंगे तो हम महान बन जायेंगे। समझदार लोग समय तथा शक्ति के रहते अपनी आत्मा को अच्छे कार्याें के द्वारा पवित्र करते हैं। यह मानव जीवन हमें अपनी आत्मा के विकास के साथ ही प्रभु का कार्य करने के लिए मिला है। पवित्र आत्मा ही परमात्मा की निकटता का सौभाग्य प्राप्त करती है। इसलिए आइये, हम प्रभु का कार्य करके अपने मन, बुद्धि, आत्मा तथा हृदय को पवित्र बनायें।

(5) स्वार्थ का एक विचार हमारे सारे गुणों को नष्ट कर देता है:- 

               हृदय के अंदर ईश्वरीय गुण भरे हैं। कहीं हमारे स्वार्थ से भरे गंदे हाथ इस ईश्वरीय गुण रूपी खजाने को लूट लें। स्वार्थ का जहर जिसके मन में गया उसका सब कुछ लुट जाता है। बड़े-बड़े आदमी बहुत ऊँचाई तक पहुँचने के बाद अपने स्वार्थ के कारण बहुत नीचे तक गिरते चले जाते हैं। स्वार्थ रहित हृदय पवित्र होता है। यदि परमात्मा से प्रेम करना है तो अपने से अर्थात अपने स्वार्थ से ऊपर उठना होगा क्योंकि प्रेम गलि अति साकरी जा में दो समाय अर्थात् हमारे हृदय में एक ही के लिए रहने का स्थान है इसलिए इसमें या तो हम परमात्मा के गुणों को रख लें या फिर अपने स्वार्थ को। प्रभु की राह में निरन्तर आगे बढ़ने के लिए हमें धैर्यपूर्वक सहन करना चाहिए। ऐसा करने से अधिक से अधिक प्रभु प्रेम की प्राप्ति होती है।

(6) हमारा जीवन केवल प्रभु इच्छा को जानने तथा पूजा के लिए है:- 

               अर्जुन ने पहले भगवानोवाच गीता के ज्ञान द्वारा प्रभु इच्छा को जानने की कोशिश की तथा फिर प्रभु का कार्य करने के लिए युद्ध किया। अर्जुन ने गीता के सन्देश द्वारा जाना कि न्याय की स्थापना के लिए युद्ध करना ही प्रभु का कार्य अर्थात पूजा है। पवित्र गीता के ज्ञान से अर्जुन को शिक्षा मिली कि न्यायार्थ अपने बन्धु को भी दण्ड देना चाहिए। अर्जुन ने प्रभु की शिक्षा को पहले जाना फिर महाभारत का युद्ध करके धरती पर न्याय के साम्राज्य की स्थापना की। अर्जुन ने परमात्मा के आदेश का पालन करने के लिए अपने ही कुटुम्ब के दुष्टों का विनाश किया।

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